महायज्ञ का पुरस्कार

महायज्ञ का पुरस्कार

कहानी महायज्ञ का पुरस्कार से है। इस कहानी के निबंधकार कथाकार यशपाल जी हैं ,जो स्वतंत्र संग्राम में क्रांति सेनायहनी भी थे इनके अन्य प्रमुख बहुत सी कहानियां संग्रह है।

इस कहानी की मुख्यता यह है कि एक विपरीत परिस्थिति होने के बावजूद सेठ ने अपनी मानव चित कर्तव्य के मूल्य को अच्छे से निर्वाह किया है।
एक धनी सेठ जो दान और पुण्य करता है परंतु समय एक सा नहीं होता किसी का भी, 1 दिन बाद गरीबी के कगार पर होता है तभी एक निर्णय लेता है अपने समय किए गए दान  पुण्य के
यज्ञ को बेचने का ।उस समय यज्ञ का क्रय और विक्रय होता था।
     जब यज्ञ बेचने का विचार कर घर से चार रोटी बांधकर चलता है तो उसी रास्ते में एक छटपटाता हुआ बीमार कुत्ता दिखता है उसका मन दया भाव से भर जाता है।
उसे उस कुत्ते पर दया आती है और उस कुत्ते को अपनी चारों रोटी बारी-बारी से तोड़ तोड़ कर खिला देता है।
कुत्ते में थोड़ी ताकत देख सेठ को बहुत अच्छा लगता है, कुत्ते की आंखों में अपने लिए कृतज्ञता उसे दिखती है।
अंत में सेठ बिना खाए एक दूसरे धनीसेठ के घर पहुंचता है जो उस धनी सेठ की पत्नी जो हर एक चीज को पहले से जान लेती है ऐसे उसमें विद्या थी। उसने भविष्य बताने वाले गुण थे।
धनी सेठ की पत्नी उसके मानव मूल्यों  को बिक्री करने को कहती है और और बताती है कि किस तरह वह भूखे रहकर भी अपने हिस्से की सारी रोटी उस लाचार कुत्ते को खिला दिया है उससे वही महायज्ञ बेचने को कहती है। मगर सेठ को इस तरह की मानव मूल्यों के कर्तव्य को बेचने की बात ठीक नहीं लगती है वह अपना छोलाउठाता है ,और वहां से चले जाता है।
घर आकर अपनी पत्नी को सारी बातें बताता है उसकी पत्नी खुश हो जाती है वो कहती है कि एक विपरीत परिस्थिति में भी आपने अपना मानव मूल्य को नहीं छोड़ा अपने कर्तव्य को करने से पीछे नहीं हटा इसके लिए मैं धन्य हो गई और उसी समय संध्या बेला में उसी मानव मूल्य के उपहार स्वरूप उसे अपने ही घर में हीरे जवाहरात से भरा हुआ है तहखानामिलता है।
उसी समय दिव्य वाणी होती है कि तुमने अपने भूखे रहकर उस कुत्ते को चारों रोटी खिलाकर जान बचाई।।
 
उसी का या उपहार स्वरूप महायज्ञ का पुरस्कार है ,दोनों भगवान को प्रणाम करते हैं।

धन्यवाद !


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