बड़े घर की बेटी - मुंशी प्रेमचंद | Rajani

बड़े घर की बेटी - मुंशी प्रेमचंद


नमस्ते,

मेरा नाम रजनी है मैं मुंशी प्रेमचंद जी का एक कहानी बड़े घर की बेटी जो बहुत ही अच्छी कहानी है जिसका सारांश मैंने लिखा है और आशा करती हूं की पढ़ने में अच्छा लगेगा.।

जब कभी भी अच्छी सी कहानी हम पढ़ते हैं या सुनते हैं तो वह कहानी हमारे मन में हमारे मस्तिष्क में हमेशा याद रहती है ऐसे ही एक कहानी है  मुंशी प्रेमचंद की कहानी है बड़े घर की बेटी जो हिंदी उपन्यास के सम्राट कहे जाते हैं मुंशी प्रेमचंद जी की यह कहानी काफी चर्चित है इस कहानी को मुख्य पात्र आनंदी के ऊपर है जो एक काफी धनीके घर की बेटी थी जिसकी शादी एक जमीन दारी कहे जाने के नाम पर केवल कीर्ति स्तंभ मात्र का था उस घर ब्याही गई आनंदी की है।

"बड़े घर की आनंदी जी से अपने पिता के घर मैं हर सुख सुविधा उपलब्ध था"।


आनंदी जो अपने मायके में पूरे ऐसो आराम के साथ रहने वाली लड़की थी जिसे ससुराल में वह कुछ भी नहीं मिला जिसकी उसे आदत थी।

ठाकुर साहब के दो बेटे थे जिसमेंआनंदी की शादी बड़े लड़के
से हुई थी जो बी ए करकेनौकरी करता था जिसका साधारण कद काठी था श्री कंठनाम था जो आनंदी का पति थे।

दूसरा भाई लाल बिहारी नाम था जो हट्टा कट्टा नौजवान था
श्रीकंठ अंग्रेजी की डिग्री होने पर भी वाह पाश्चात्य सामाजिक प्रथाओं की विशेष प्रेमी थे श्रीकंठ का कहना था सयों को मिलजुलकर कुटुम के साथ रहना चाहिए इसके विरोध
करने का देश और जाति दोनों के लिए हानिकारक मानते थे लेकिन इस विषय पर खुद उनकी पत्नी विरोध करती थी उनका कहना था अगर आप बहुत कुछ कहते हैं तो भी आप का आपस में ना बने तो जीवन को नरक बनाने से अच्छा है कि आप अपना देख ले।

ससुराल में आई आनंदी को नाम मात्र का भी टीम टॉमउसके ससुराल में नहीं मिला फिर भी वह अपने आप को ऐसी परिस्थिति के अनुरूप बना लि।
 आनंदी के पिता जी के घर पर हाथी घोड़ा बाग बगीचा बहुत सारे ऐसो आराम की चीज थी लेकिन ससुराल में वह सब कुछ भी नहीं था पुराना गृहस्थ घर था जिसकी जमीन पर कालीन ना दीवार पर तस्वीरें थी.
लाल बिहारी श्रीकंठ का छोटा भाई जो अपनी अशिष्टता की वजह से आनंदी अपनी भाभी पर खड़ाऊ फेंक कर मारने की कोशिश करता है पर आनंदी उसे हाथों से रोक लेती है और उसके हाथ जख्मी हो जाते हैं क्रोध के मारे अपना खाना पीना छोड़ कर कोप भवन में बैठ जाती है।

" औरत सब कुछ सह सकती है पर अपना अपमान नहीं सह सकती और खासकर अपने मायके वालों का अपमान नहीं सह सकती है। "


जब 2 दिनों के बाद श्रीकंठ को आनंदी से पता चलता है अपनी भाई की पशुवत व्यवहार और अन्याय का तब वह उसे कदापि माफ़ नहीं करना चाहता है।
अंत में कहीं ना कहीं लाल बिहारी को अपनी भूल का अपने बुरेव्यवहार का एहसास होता है तो वह अपने भाई से माफी मांगता है।

अपनी भाई का यूं ही नफरत करना और घर छोड़ने की बात उसे अपने व्यवहार पर काफी शर्मिंदा करता है, वह भाई  से जो उसे काफी स्नेह करता था आज वही उसका चेहरा नहीं देखना चाहता था। वह पछतावा के मारे फूट-फूटकर रो रहा था और अपने भाई से दरवाजे की ओट से ही माफी भी मांग रहा  था।

आनंदी एक बहुत दयालु औरत थी, उसे अब अपने क्रोध पर पछतावा हो रहा था की क्यों उसने बात को आगे बढ़ने दिया अंत में उसी के समझाने पर श्री कंठअपने भाई को माफ करता है।

मिला जुला कर यह कहानी पुरानी परिवेश के हिसाब से है, पर कुछ नवीनता भी थी, एक औरत के आत्मसम्मान के लिए भी थी।

"औरतों को कभी भी अपनी गुलाम नहीं समझे क्योंकि उसके अंदर भी एक दयालुता और कोमल हृदय होती है।"

यह कहानी बहुत अच्छी और प्रेरक थी साथ में एक बड़े घर की बेटी समझ समझदारी की भी है जिसने सब कुछ भुला कर फिर से उस परिवार को एक कर दिया।

मुझे आशा है कि आपको
इस कहानी का सारांश अच्छा लगा होगा। 

धन्यवाद !

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